मुर्गी पालन: क्यों है जरुरी परमाकल्चर फार्म मे ?

मुर्गी पालन: क्यों है जरुरी परमाकल्चर फार्म मे ?

🐔 मुर्गी पालन: क्यों है ज़रूरी परमाकल्चर फार्म में?

– मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने से लेकर प्राकृतिक पेस्ट कंट्रोल तक, मुर्गी पालन एक अमूल्य योगदान


❝परमाकल्चर सिर्फ खेती नहीं, एक सोच है — जो मिट्टी, जीव और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की बात करती है❞

इस लेख में हम सिर्फ मुर्गी पालन की प्रक्रिया नहीं, बल्कि उसका योगदान परमाकल्चर फार्मिंग में कैसे होता है — यह जानेंगे। क्योंकि चावल-गेहूं उगाना ही खेती नहीं है। असली खेती वह है जो धरती को उर्वर बनाए, जीवन को बढ़ावा दे और स्थायित्व को बनाए रखे।


🌿 परमाकल्चर का असली अर्थ क्या है?

  • परमाकल्चर = Permanent Agriculture

  • मतलब: ऐसी कृषि प्रणाली जो प्राकृतिक चक्र को तोड़े बिना, स्थायी रूप से फलती-फूलती रहे

  • इसमें ध्यान होता है रूट कॉज़ (root cause) पर — जैसे मिट्टी की कमी, जल का बहाव, जैव विविधता का नुकसान

  • समाधान भी होता है प्राकृतिक और दीर्घकालिक


🐓 मुर्गी पालन से मिट्टी कैसे बनती है “सोना”?

मेरी माटी पर मुर्गी पालन कोई आय का साधन नहीं, बल्कि एक पुनरुत्थान का ज़रिया है:

  • शुरुआत में ही पोल्ट्री फार्म बनवाया

  • खरीदे 100–150 चूजे (देसी और FFG Kuroiler नस्लें)

  • मुख्य उद्देश्य: बीट (droppings) से खाद बनाना, न कि अंडे या मांस बेचना

मुर्गी बीट के लाभ:

  • अत्यधिक नाइट्रोजन युक्त — पेड़ों और पौधों के लिए अमृत

  • मिट्टी में मिलाकर बनती है ऑर्गेनिक खाद

  • रासायनिक खादों की तुलना में ज़्यादा टिकाऊ


🌾 मुर्गी पालन: कीट नियंत्रण में मददगार

  • मेरी माटी पर मुर्गियाँ फ्री रेंज में पाली गईं — यानी खुला चराई सिस्टम

  • बाहर जाकर कीड़े खाती हैं — जो खेत के लिए हानिकारक होते हैं

  • इससे प्राकृतिक पेस्ट कंट्रोल भी होता है

  • साथ ही, फीड कॉस्ट भी घटता है


 

🧬 चुनी गई नस्लें: देसी और Kuroiler

  • देसी मुर्गियाँ: कठोर मौसम सहने की ताक़त

  • FFG Kuroiler: तेज़ी से बढ़ने वाली, मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता

  • दोनों नस्लें: कम देखभाल में अधिक लाभ


💰 उत्पादन नहीं, पुनरुत्थान प्राथमिकता

  • कई किसान मुर्गियाँ बेचकर पैसा कमाने पर ज़ोर देते हैं

  • लेकिन मेरी माटी पर इससे भी महत्वपूर्ण है मिट्टी को उपजाऊ बनाना

  • मुर्गियों की बीट = अमूल्य योगदान

  • इससे उपजी फसलें = सुपोषित, रसायन-मुक्त


🚫 थू है उस खेती पर…

“जो सिर्फ उत्पादन बढ़ाने के लिए ज़हरीले केमिकल्स का प्रयोग करती है, वो खेती नहीं — आत्मघाती प्रयोग है।”

  • आज कैंसर जैसी बीमारियाँ क्यों बढ़ रही हैं?

  • खेतों में केमिकल्स का अंधाधुंध उपयोग

  • किसान अब सिर्फ “प्रोड्यूसर” बन गए हैं, धरती के सेवक नहीं


✅ समाधान: वापस प्रकृति की ओर लौटिए

  • मुर्गी, बकरी और गाय पालन हैं परमाकल्चर के तीन अहम स्तंभ

  • खाद, पेस्ट कंट्रोल और मिट्टी पुनर्जीवन — तीनों में सहायक

  • यही है नेचुरल फार्मिंग का रास्ता


📣 Meri Mati की अपील:

“अगर आप असली किसान बनना चाहते हैं, तो खेत में सिर्फ ट्रैक्टर नहीं — मुर्गियाँ, बकरियाँ और प्रकृति की समझ भी उतारिए।”

  • रसायन छोड़िए, मिट्टी को जीवित कीजिए

  • मुर्गी पालन को आमदनी से हटाकर मिट्टी सेवा का माध्यम बनाइए

  • परमाकल्चर अपनाइए, धरती को दीजिए नया जीवन


🌱 अगले लेख में:

कैसे बकरी पालन भी एक नेचुरल फार्म की रीढ़ हो सकता है?
— मेरी माटी के अनुभवों से सीखिए

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