मल्चिंग: विकल्प नहीं, जरुरत है !!

मल्चिंग: विकल्प नहीं, जरुरत है !!

मल्चिंग होती क्या है ? मल्चिंग से किसी भी गैर उपजाऊ या बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि कैसे बनाये ? मल्चिंग क्यों जरुरत है क्लाइमेट चेंज से बचने के लिए ? यही हम जानेगे इस आर्टिकल मे।

मल्चिंग होती क्या है ?

मिट्टी को जब हम ढकते है ऐसी चीज़ो से जिससे मिट्टी की उर्वरता सुधरे और नमी बनी रहे, इस प्रक्रिया को मल्चिंग कहते है। मल्चिंग जैविक (organic) और अकार्बनिक (inorganic) दोनों हो सकते है। अकार्बनिक का मतलब – कार्बन न होने वाले रासायन। अकार्बनिक मे हम पत्थर, प्लास्टिक, ईंट, आदि का उपयोग कर सकते है। जैविक मे हम घास, घास की कतरनें, पेड़ के छाल के चिप्स, सूखे पत्ते, अदि का उपयोग कर सकते है।

मल्चिंग से किसी भी गैर उपजाऊ या बंजर भूमि को उपजाऊ भूमि कैसे बनाये ?

मल्चिंग की मदद से हम किसी भी जमीन को उपजाऊ बना सकते है। इसकी मदद से छोटे पेड़ पौधों को बड़े होने मे सहयोग मे लाया जा सकता है। मल्चिंग ऐसी परिस्तिथि एवं माहौल बनाता है जिसे पेड़ पौधे स्वस्थ रहते है, उनकी जड़े मजबूत रहती है, जमीन को जड़े पकड़ कर रहती है और जितनी भी पोषण उसे चाहिए वह मल्चिंग से उसे मिल जाती है। मल्चिंग एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।

बारिश के समय पेड़ पौधे फूलते और बढ़ते है, बीज से पेड़ पौधे उगते है। मानसून या उसके कुछ महीने बाद तक बीज से आए पौधे या फिर पहले के छोटे पौधों को कोई खास फर्क नहीं पड़ता पर जब गर्मी दिन प्रतिदिन बढ़ती है तो कई छोटे पौधे धीरे धीरे सूखने लगते है। उस समय उनको पानी की तो जरुरत पड़ती ही है पर साथ मे उनको तेज धुप से भी बचाव चाहिए।

हर पेड़ पेड़ पौधों को सनलाइट या सूरज की रोशनी की जरुरत पड़ती है। उनको हर समय छाव मे रखना भी विकल्प नहीं है क्योकि जो फारेस्ट वैरायटी पेड़ होते है वह तेज धुप भी बर्दास्त कर सकते है, प्रॉब्लम आती है फ्रुइटिंग प्लांट्स के साथ, उनको विशेष ध्यान देना पड़ता है। खैर हम फिलहाल दोनों वैरायटी के बारे मे बात करेंगे – फारेस्ट और फ्रुइटिंग प्लांट्स। हम बात करेंगे छोटे पौधे के बारे मे।

मल्चिंग एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। बड़े पेड़ जब गर्मियों के समय अपने पतों को झराते है जब पत्ते सूख जाते है और पत्ते जब जमीन मे गिर कर मिटी के ऊपर एक परत बनाते है जिससे सूरज की किरणे सीधा मिटी से नहीं टकराती और मिटी की नमी बरकरार रहती है लम्बे समय के लिए। छोटे पौधों की जड़े ज्यादा गहरी नहीं रहती और सूरज की तेज किरणों से मिटी सूखने लगती और पानी की कमी के कारण छोटे पौधे सूख कर मर सकते है। पर सूखे पतों के परत के कारण वह सूखने से बच तो जाते ही है और साथ साथ बढ़ने मे भी यह प्रक्रिया साथ देती है, इसी को मल्चिंग कहते है।

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